Saturday, November 19, 2011

इंतज़ार


कुछ अनकहे  
अनसुलझे  सवाल  
दिल में लिए चलता हूँ 

जिंदगी की उलझनों को 
सुलझाने की कोशिश किया करता हूँ 

बहार का इंतज़ार नहीं 
मुझ को  
इस मौसम के बदलने का 
इंतज़ार किया करता हूँ 

मैं अपनी दस्ता के 
कोरे पन्नो पर  
कुछ रंग बिखेरने की दुआ करता हूँ 

चलते चलते 
युही कभी खुबसूरत खवाबो की
कालिया पिरोया करता हूँ 

अपने उलझे सवालो के 
जवाब मैं ढूंढा करता हूँ 

हकीकत से रूबरू हूँ मैं
मगर 
इक नया खवाब 
हर दिन पिरोया करता हूँ 


इस मौसम के बदलने का 
इंतज़ार किया करता हूँ 

No comments:

Post a Comment