जिंदगी की इस रफ़्तार में
न जाने वो बचपन कहाँ गम हो गया
पता ही न चला
पैदल दोड़ते दोड़ते
वो गलियां कहाँ रह गयी
पता ही न चला
कब साईकल की रेस की जगह
मोटर साइकिल के स्टंट ने ले ली
पता ही न चला
कब स्कूल की कैंटीन की जगह
mcD और pizza hut ने ले ली
पता ही न चला
और इस भीड़ में चलते-चलते
मेरा बचपन कहाँ गुम हो गया
पता ही न चला
याद आती है, अब भी वो
हिंदी संस्कृत और GRAMMER की CLASSES
वो पहाड़े रटना
और वो homework से डरना
सुबह की पहली घंटी से बचना
और आखरी PERIOD की घंटी
को तरसना
जब स्कूल जाना , रोज नया adventure होता था
पढना-लिखना तोह बस खेल था
आसली मज़ा interval में होता था
कब किताबो के उस भोझ ने
मेरी मासूमियत छीन ली
पता ही न चला
और इस भीड़ में मेरा बचपन
कहाँ गुम हो गया
पता ही न चला
कब मेरे स्कूल बैग की जगह
ऑफिस के BRIEFCASE ने ले ली
पता ही ना चला
कब मेरे MARKS की COUNTING की जगह
मेरे TARGETS ने ले ली
पता ही न चला
अन रिंकी , पिंकी और जूही
रोज घर खेलने नहीं आती
सब FACEBOOK , TWITTER और LINKED-IN पे BUSSY है
कब SATURDAY NIGHT के GAMES की जगह
DISCOS और RAVE-PARTIES ने ले ली
पता ही न चला
और इस नई दुनिया की
चका-चोंध में
कब मेरा बचपन गुम हो गया
पता ही न चला
अब उस दो-रुपये की TOFFEE
शायद अब आंसू नहीं बहाया करते ...
दिल भी गर , टूट जाये तोह अब बहाने
नहीं बनाया करते
अब खेलने के लिए और खिलोने नहीं चाहिए
दिल, जज्बात और EMOTIONS बहुत है
प्यार महज अब हमारे लिए
फिल्म का एक DIALOG नहीं है
हम तोह रोज प्यार में गोते लगाया करते है
घर-घर के उस खेल में
अब गुड्डे-गुडिया नहीं नाचते
हम अपनी ताल पे
जिंदगी की नचाया करते है
और जिंदगी के साथ यु ही नाचते-नाचते
कब मेरा बचपन गुम हो गया
पता ही न चला
और यु ही खड़ा अब भी कभी
पीछे मुड के देखता हूँ
मुझे मेरा बचपन याद आता है
अपनी शरारते, वो नादानी , वो जूनून याद आता है