Saturday, November 30, 2013

तेरा खुमार

तेरे इश्क़ का ये कैसा खुमार  है 
मैं आज कल अपना पता 
अपने अक्स  से मांगता हूँ। 

खुद को देखता हु मैं आईने में 
खुद को देखता हु मैं आईने में 

मगर, निगाहे उसे चेहरा तेरा बताती हैं 

Tuesday, May 28, 2013

नादां ये दिल

जिंदगी  के उस अंजन सफ़र पर
कुछ नादानीया हम कर गए  
वक़्त के उस तीख़े मोड़ पे 
जो  दिल को घायल कर गए 

भुला के ये सारी दुनिया 
उस धूल को पाने चल दिए 

न होश था, न कोई खबर थी 

क्या होगा अंजाम किस को 
फिकर थी 

बस एक जुनून था 

जिसे दिल में लिए चल दिए  थे 
दिल की एक नादाँ खवाहिश  
पूरी कर चल दिए थे 



भूल गए थे,ये दिल धोकेबाज  है 
आज है मेरे सीने में 
कल किसी और का मेहमान है 
भूल  गए थे, ये दिल बड़ा बदमाश है  

लेकिन जब होश आया 

देर हो गयी थी 
समय की कुछ हसीन कड़िया 
हाथ से गिर गयी थी 


कुछ यादें थी 
जो अब दर्द की दास्ताँ बन गयी थी 
पर दिल की वो खवाहिश 
अब तक पूरी न हुई थी 


कई ज़ख़्म खाए 
कई दिल तोड़े  है 
उन नादानियो के साथ 
न जाने कितने अश्क पिरोये  है 

अब वक़्त आया है

ये दिल कुछ संभला है
धुल के गुबार को भूल कर
हकीकत को पाने चल निकला है

लेकिन नादाँ ये दिल

अब भी बेफिक्रा है
नादानीया करते अब भी नहीं थकता है 



और अनजाने में इस दिल 
के खातिर हम कितनी 
नादानीया कर गए 

Monday, April 22, 2013

ये पल

यु  ही एक पल जिंदगी का 
और बीत जाएगा 

जिंदगी की दौड़ में दौड़ते दौड़ते
एक रोज  भी थक जाएगा 

लेकिन आँखों में 
ये खवाबो का  करवा 
नहीं रुकने वाला 

होटो  पे आती खावाहिशो का  
ये सिलसिला नहीं 
थमने वाला 

एक ख्वाब कल फिर कहीं 
इन आँखों में सज जाएगा 

फिर एक अरमा कोई 
इस जुब़ा पे आ जाएगा

बस दो चार लम्हों की है ये जिंदगी 
जीले अपने खवाबो ... 
अपनी खावाहिशो को अभी

ये वक़्त ये पल  के फिर नहीं आएगा  


Monday, December 17, 2012

मेरा बचपन


जिंदगी की इस रफ़्तार में 
न जाने वो बचपन कहाँ गम हो गया 
पता ही न चला 

पैदल दोड़ते दोड़ते  
वो गलियां कहाँ रह गयी 
पता ही न चला 

कब साईकल  की रेस  की जगह 
मोटर साइकिल  के स्टंट ने ले ली 
पता ही न चला 

कब स्कूल  की कैंटीन की जगह  
mcD और pizza hut ने ले ली 
पता ही न चला 

और इस भीड़ में चलते-चलते  
मेरा बचपन कहाँ गुम  हो गया 
पता ही न चला 

याद आती है, अब भी वो 
हिंदी संस्कृत और GRAMMER की CLASSES  
वो पहाड़े रटना 
और वो homework  से डरना 

सुबह  की पहली घंटी से बचना  
और आखरी PERIOD की घंटी 
को तरसना  

जब स्कूल जाना ,  रोज नया adventure होता था 
पढना-लिखना तोह बस खेल था 
आसली मज़ा interval में होता था 

कब किताबो  के उस भोझ ने 
मेरी मासूमियत छीन ली 

पता ही न चला  
और इस भीड़ में मेरा बचपन 
 कहाँ गुम  हो गया 
पता ही न चला 

कब मेरे स्कूल बैग की जगह  
ऑफिस के BRIEFCASE ने ले ली  
पता ही ना चला 

कब मेरे MARKS  की COUNTING  की जगह 
मेरे TARGETS ने ले ली  
पता ही न चला 

अन रिंकी , पिंकी और जूही 
रोज घर खेलने नहीं आती 
सब FACEBOOK , TWITTER और LINKED-IN  पे BUSSY है 


कब SATURDAY NIGHT के GAMES की जगह 
DISCOS और RAVE-PARTIES ने ले ली
पता ही न चला 

और इस नई दुनिया की 
चका-चोंध में 
कब मेरा बचपन गुम हो गया 
पता ही न चला 
  

अब उस दो-रुपये की TOFFEE 
शायद अब आंसू नहीं बहाया करते ... 
दिल भी गर , टूट जाये तोह अब बहाने 
नहीं बनाया करते 

अब खेलने के लिए और खिलोने नहीं चाहिए  
दिल, जज्बात और EMOTIONS बहुत है 

प्यार महज अब हमारे लिए 
फिल्म का एक DIALOG नहीं है 
हम तोह रोज प्यार में गोते लगाया करते है 

घर-घर के उस खेल में 
अब गुड्डे-गुडिया नहीं नाचते  
हम अपनी ताल पे 
जिंदगी की नचाया करते है  

और जिंदगी के साथ यु ही नाचते-नाचते 
कब मेरा बचपन गुम  हो गया 
पता ही न चला 

और यु ही खड़ा अब भी कभी 
पीछे मुड के देखता हूँ 
मुझे मेरा बचपन याद आता है 
अपनी शरारते, वो नादानी , वो जूनून याद आता है 


Thursday, September 20, 2012

दिल की बात


मेर जां मेरी जां 
जरा  सुन लो  मेरी बात 
मेरी दिल की कहानी 
मेरे दिल के जज्बात 

ज़रा देख इधर 
मान लो मेरी बात 
ज़रा सुन तोह सही 
क्या है इस दिल का हाल 

अब, ऐसे ना रूठो
ज़रा तोह करो बात 
कहने दो मुझे 
मेरी दिल की बात 

ना रोको,  ना तोको 
ना काटो मेरी बात 
 है जो मेरे दिल में 
ज़रा महसूस कर वो एहसास 

कहीं रह ना जाऊ 
कहीं मार ना जाऊ 
बड़े नाजुक बड़े, बड़े संगीम है 
मेरे हालत 

दिल में बसे इस प्यार 
को आज बेरोक बह जाने दे 
आँखों में बसे उस खवाब को
आज जुबा पे आने दे 

अब जो तेरा हो फैसला 
कबूल है मुझे 
हर गम ,हर शिकायत तेरी अब 
मंज़ूर है मुझे 

बस एक बार 
मान लो मेरी बात 
सुन ले मेरी 
ये आखरी फरियाद 
कहने दे मुझे 
मेरी दिल की बात 

Sunday, August 26, 2012

जिंदगी

रूठी इस जिंदगी को 
मानाने की कोशिश कर रहा हूँ 

मैं बंजर इस रेत पे 
गुलिस्तान सजाने की कोशिश कर रहा हूँ

माना मुशकिल है चट्टान में रस्ते बनाना 
मै हर रोज एक नयी कोशिश कर रहा हूँ

ना जाने कहाँ 
किस जहाँ में छिपी है वो 

ना जाने कहाँ 
किस जहाँ में छिपी है वो

मैं अपनी जिंदगी, अपनी ख़ुशी
दूंढ रहा हूँ 

रूठी अपनी जिंदगी को मानाने की 
कोशिश कर रहा हूँ

Saturday, July 7, 2012

लम्हे

कुछ लोग जिंदगी में 
हसीन लम्हों की तरह आते है

बस, दो पल का सुकून 
दो पल की ख़ुशी दे जाते है 
यादो के ढेर में 
मुठी भर यादें, डाल जाते है 
दिल की दीवारों पे 
अपने निशान बना जाते है 

कुछ  लोग जिंदगी में
बस हसीन लम्हों की तरह आते है

सोचा था की इस लम्हे को 
यहीं कैद कर लू
भर लू इसे बाहों में
और इसे मैं अपना कर लू 

पर वक़्त की इन मौजो को 
कुछ और ही मंजूर है 
बहा ले गयी उन लम्हों को 
जिन पर हम को गुरुर है

अब दिल में उन बीते लम्हों 
के बस निशान बाकि है 
हसीन उन लम्हों की 
बस याद बाकि है